पाठकः सीमा वर्मा जी
'ऋता शेखर मधु'जी साहित्य जगत का एक जाना पहचाना नाम है। उनकी कलम लघुकथा से लेकर हाइकु, हाइगा, कविता, ग़ज़ल, आलेख एवम् छंदों पर भी खूब चलती है। सबसे अच्छी बात है कि आप विधा के प्रति बहुत गंभीर एवं समर्पित है। हाल ही में आपकी नवीनतम कृति 'धूप के गुलमोहर'प्रकाशित हुई है। आपने यह संग्रह लघुकथा विधा को समर्पित किया है। कवर पृष्ठ बहुत ही शानदार है, पेपर भी उम्दा क्वालिटी का है। जिसके लिए 'श्वेतांशु प्रकाशन'
बधाई
के पात्र हैं।
संग्रह में सबसे अच्छी बात यह है कि अनुक्रमांक में सभी लघुकथाओं को विषयों के आधार पर वर्गीकृत किया है। 41 लघुकथाएं सामाजिक सरोकार से जुड़ी हुई हैं तो 45 लघुकथाएं रिश्तों के आधार पर बुनी गईं हैं। 4 लघुकथाएं कारोना काल पर और 43 अन्य विविध लघुकथाएं हैं।
संग्रह का शीर्षक 'धूप के गुलमोहर'अपने आप में गहन अर्थ समेटे हुए है। आखिर यह नाम ही क्यों? 'मन की बात'में लेखिका बताती हैं:
"जिंदगी की कड़ी धूप में चलते हुए मिल जाए गुलमोहर का घना साया...
समझ लो थके कदमों को मिल गया कोमल रूई का फाहा।"
गज़ब बात कही लेखिका ने:
"जिसने सही धूप, उसने पा लिया गुलमोहर सा रूप।"
जिसने आदत ही बना ली हो चुनौतियों को टक्कर देने की, उसे गुलमोहर की लालिमा पाने से कौन रोक सकता है भला। इसे कहते हैं कविता का हो जाना।
लेखिका ने पुस्तक की शुरुआत 'मेरी बात'से की है जिसमें रचना प्रक्रिया के बारे में भी बताया है कि जीवन जीते हुए, आसपास के लोगों से मिलते हुए कई पल ऐसे आतें हैं जो मन मस्तिष्क पर अपनी जगह बना लेते हैं। यही विशेष पल चिंतन के लिए मजबूर करते हैं। इन्हें हूबहू पेश नहीं किया जा सकता इसलिए उपयुक्त शब्दों का चयन कर रचना में ढालना पड़ता है। उन्होंने लघुकथा विधा को अपने शब्दों में परिभाषित किया है जो एक अनूठी पहल है।
इस संग्रह की भूमिका लघुकथाकारा 'आदरणीया प्रेरणा गुप्ता'जी द्वारा लिखी गई है जिसमें उन्होंने लघुकथाओं की समीक्षा भी की है। भूमिका पढ़ते ही पाठकों का मन अपने आप लघुकथाओं को पढ़ने के लिए लालायित हो उठेगा।
आइए अब बात करते है लघुकथाओं पर:
सामाजिक सरोकार से जुड़ी पहली ही लघुकथा 'माँ'ने दिल जीत लिया। जिसमें लेखिका का पैनी दृष्टिकोण नज़र आया और आगे की लघुकथाएं पढ़ने को मन आतुर हो उठा।
'मासूम अपराध'एक बेहद मार्मिक लघुकथा है जिसमें एक गरीब बच्चे की व्यथा को बखूबी बयां किया गया है।
'नया दरवाज़ा'संवादात्मक शैली में लिखी रचना है। जिसमें संदेश दिया गया है कि औरत होने का मतलब यह नहीं कि वह कमज़ोर है।
'नैतिकता' : उन लोगों पर अच्छा कटाक्ष किया है जो कहते कुछ और है और करते कुछ और है।
'अपनी- अपनी उम्मीदें'यह लघुकथा बहुत ही सार्थक लगी क्योंकि अक्सर लोग जो खुद कामचोर होतें हैं वही मेहनतकश लोगों पर छींटाकशी करते नजर आतें हैं।
'बेतार संदेश'जिंदगी आगे बढ़ने का नाम है। ज़माने के साथ तो चलना ही पड़ेगा। इस लघुकथा में लेखिका ने यही संदेश देने की कोशिश की है कि कभी-कभी जो हम सोच भी नहीं पाते वह हो जाता है।
'भूख का पलड़ा'एक बेहद मार्मिक लघुकथा है। भूख पर किसी का ज़ोर नहीं चलता। राजा हो या रंक, पेट की आग बुझानी ही पड़ती है। खाना किन हाथों से मिल रहा है यह भूखा पेट नहीं सोचता।
'गठबंधन'एक बढ़िया व्यंग्य रचना है क्योंकि कुर्सी के लिए तो लोग गधे को भी बाप बना लेते हैं।
'आदर्श घर'लिंगभेद की जड़ें अभी भी जीवित है। कौन कहता है कि बेटा बेटी में फर्क मिट गया है। अक्सर उभरती पीड़ा भीतर ही भीतर दबे घाव को पुनः हरा कर देती है।
'रिटायर्ड'इस कथा के माध्यम से यह बताया गया है कि जब इंसान के पास कुर्सी होती है तब सभी उसे पूछते हैं, उसका मान सम्मान भी करते हैं, कुर्सी से हटते ही वह इंसान सबके लिए बेगाना हो जाता है। चंद शब्दों में ही कथ्य को बड़ी खूबसूरती के साथ उभारा है।
'चिपको'बहुत बढ़िया लघुकथा है, चिपको आंदोलन का वह समय आंँखों के सामने सजीव हो उठा जिसे भले ही सब ने ना देखा हो मगर वह पीड़ा महसूस जरूर की है। शानदार शब्दों में इस रचना को पिरोया है लेखिका ने जिसके लिए वह
बधाई
की पात्र है।
'नेग'- प्रेम और सद्भावना भरा व्यवहार पत्थर दिल इंसान को भी बदलने पर मजबूर कर देता है।
'ठनी लड़ाई'चुलबुली सी मगर बेहद रोचक कथा है। आंँखों के सामने चलचित्र सी चलती, बिंबों का बेहद खूबसूरती से प्रयोग किया गया है।
रिश्तों की लघुकथाएं:
'अंतर्देशीय'आज के समय में रिश्तों में आती दूरियों का एहसास करवाती लघुकथा है।
'पुनर्गठित'इस लघुकथा में मांँ ने बेटी का साथ देकर सही किया ताकि जो उसके साथ घटा, वह बेटी के साथ ना घटे। आज की नारी कमज़ोर नहीं है। सार्थक दिशा की ओर अग्रसर करती लघुकथा के लिए साधुवाद है लेखिका को।
'समस्या'परिवार में आपसी प्रेम का उदाहरण देती मन को छू लेने वाली रचना है।
'सागर की आत्महत्या'एक बेहद गंभीर विषय उठाया है लेखिका ने अपनी इस लघुकथा के माध्यम से। अक्सर पूरे घर की जिम्मेदारियां निभाते पिता के मन की बात को कोई समझ नहीं पाता, उन्हें भी जरूरत है समझने की।
'आप अच्छे हो'प्रतियोगिता के युग में माता-पिता बच्चों को मशीन बना रहे हैं। उन्हें एक दूसरे से आगे बढ़ते देखना चाहते हैं। इसी बीच अगर वह ऐसा ना कर पाएं तो जीवन की एहलीला खत्म करने की ओर अग्रसर हो जाते हैं। इसलिए बेहतर है उन्हें सही समय पर संभाल लिया जाए। आज के युग के लिए संदेश देती एक सार्थक कथा।
विविध लघुकथाओं में:
'तुसी ग्रेट हो'एक बेहद हल्की फुल्की खूबसूरत रचना है।
'कॉपी पेस्ट'इस रचना को पढ़ने के बाद तो बस मन में एक ही पंक्ति बार-बार आ रही है "नानक दुखिया सब संसार।"
'एहसासों की दीपावली'रिश्तो का अहसास करवाती बेहद मार्मिक रचना है। समय बहुत तेजी से बीत रहा है और सब अपने आप में व्यस्त हैं, अकेलेपन से निपटने के लिए अपने मन को खुद ही समझाना पड़ता है।
'शपथ'इंटरनेट के इस दौर में हम रिश्तों को तरजीह देना भूल गए हैं और आभासी दुनिया में कहीं खो गये है।
अन्य और भी लघुकथाएं हैं जिन पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है किंतु आगे मैं पाठकों के लिए छोड़ती हूँ।
मुझे उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आपके विचार पाठकों के मन मस्तिष्क में उतरकर उनके जीवन को सही दिशा की ओर दृष्टिगोचर कर देंगे। लेखिका को इस खूबसूरत संग्रह के लिए हार्दिक
बधाई
एवं शुभकामनाएंँ प्रेषित करती हूँ। उनकी कलम यूंँ ही नित नये आयाम स्थापित करती रहे।
सीमा वर्मा
लुधियाना (पंजाब)
पुस्तक- धूप के गुलमोहर-लघुकथा संग्रह
लेखिका- ऋता शेखर 'मधु'
'ऋता शेखर मधु'जी साहित्य जगत का एक जाना पहचाना नाम है। उनकी कलम लघुकथा से लेकर हाइकु, हाइगा, कविता, ग़ज़ल, आलेख एवम् छंदों पर भी खूब चलती है। सबसे अच्छी बात है कि आप विधा के प्रति बहुत गंभीर एवं समर्पित है। हाल ही में आपकी नवीनतम कृति 'धूप के गुलमोहर'प्रकाशित हुई है। आपने यह संग्रह लघुकथा विधा को समर्पित किया है। कवर पृष्ठ बहुत ही शानदार है, पेपर भी उम्दा क्वालिटी का है। जिसके लिए 'श्वेतांशु प्रकाशन'
बधाई
के पात्र हैं।
संग्रह में सबसे अच्छी बात यह है कि अनुक्रमांक में सभी लघुकथाओं को विषयों के आधार पर वर्गीकृत किया है। 41 लघुकथाएं सामाजिक सरोकार से जुड़ी हुई हैं तो 45 लघुकथाएं रिश्तों के आधार पर बुनी गईं हैं। 4 लघुकथाएं कारोना काल पर और 43 अन्य विविध लघुकथाएं हैं।
संग्रह का शीर्षक 'धूप के गुलमोहर'अपने आप में गहन अर्थ समेटे हुए है। आखिर यह नाम ही क्यों? 'मन की बात'में लेखिका बताती हैं:
"जिंदगी की कड़ी धूप में चलते हुए मिल जाए गुलमोहर का घना साया...
समझ लो थके कदमों को मिल गया कोमल रूई का फाहा।"
गज़ब बात कही लेखिका ने:
"जिसने सही धूप, उसने पा लिया गुलमोहर सा रूप।"
जिसने आदत ही बना ली हो चुनौतियों को टक्कर देने की, उसे गुलमोहर की लालिमा पाने से कौन रोक सकता है भला। इसे कहते हैं कविता का हो जाना।
लेखिका ने पुस्तक की शुरुआत 'मेरी बात'से की है जिसमें रचना प्रक्रिया के बारे में भी बताया है कि जीवन जीते हुए, आसपास के लोगों से मिलते हुए कई पल ऐसे आतें हैं जो मन मस्तिष्क पर अपनी जगह बना लेते हैं। यही विशेष पल चिंतन के लिए मजबूर करते हैं। इन्हें हूबहू पेश नहीं किया जा सकता इसलिए उपयुक्त शब्दों का चयन कर रचना में ढालना पड़ता है। उन्होंने लघुकथा विधा को अपने शब्दों में परिभाषित किया है जो एक अनूठी पहल है।
इस संग्रह की भूमिका लघुकथाकारा 'आदरणीया प्रेरणा गुप्ता'जी द्वारा लिखी गई है जिसमें उन्होंने लघुकथाओं की समीक्षा भी की है। भूमिका पढ़ते ही पाठकों का मन अपने आप लघुकथाओं को पढ़ने के लिए लालायित हो उठेगा।
आइए अब बात करते है लघुकथाओं पर:
सामाजिक सरोकार से जुड़ी पहली ही लघुकथा 'माँ'ने दिल जीत लिया। जिसमें लेखिका का पैनी दृष्टिकोण नज़र आया और आगे की लघुकथाएं पढ़ने को मन आतुर हो उठा।
'मासूम अपराध'एक बेहद मार्मिक लघुकथा है जिसमें एक गरीब बच्चे की व्यथा को बखूबी बयां किया गया है।
'नया दरवाज़ा'संवादात्मक शैली में लिखी रचना है। जिसमें संदेश दिया गया है कि औरत होने का मतलब यह नहीं कि वह कमज़ोर है।
'नैतिकता' : उन लोगों पर अच्छा कटाक्ष किया है जो कहते कुछ और है और करते कुछ और है।
'अपनी- अपनी उम्मीदें'यह लघुकथा बहुत ही सार्थक लगी क्योंकि अक्सर लोग जो खुद कामचोर होतें हैं वही मेहनतकश लोगों पर छींटाकशी करते नजर आतें हैं।
'बेतार संदेश'जिंदगी आगे बढ़ने का नाम है। ज़माने के साथ तो चलना ही पड़ेगा। इस लघुकथा में लेखिका ने यही संदेश देने की कोशिश की है कि कभी-कभी जो हम सोच भी नहीं पाते वह हो जाता है।
'भूख का पलड़ा'एक बेहद मार्मिक लघुकथा है। भूख पर किसी का ज़ोर नहीं चलता। राजा हो या रंक, पेट की आग बुझानी ही पड़ती है। खाना किन हाथों से मिल रहा है यह भूखा पेट नहीं सोचता।
'गठबंधन'एक बढ़िया व्यंग्य रचना है क्योंकि कुर्सी के लिए तो लोग गधे को भी बाप बना लेते हैं।
'आदर्श घर'लिंगभेद की जड़ें अभी भी जीवित है। कौन कहता है कि बेटा बेटी में फर्क मिट गया है। अक्सर उभरती पीड़ा भीतर ही भीतर दबे घाव को पुनः हरा कर देती है।
'रिटायर्ड'इस कथा के माध्यम से यह बताया गया है कि जब इंसान के पास कुर्सी होती है तब सभी उसे पूछते हैं, उसका मान सम्मान भी करते हैं, कुर्सी से हटते ही वह इंसान सबके लिए बेगाना हो जाता है। चंद शब्दों में ही कथ्य को बड़ी खूबसूरती के साथ उभारा है।
'चिपको'बहुत बढ़िया लघुकथा है, चिपको आंदोलन का वह समय आंँखों के सामने सजीव हो उठा जिसे भले ही सब ने ना देखा हो मगर वह पीड़ा महसूस जरूर की है। शानदार शब्दों में इस रचना को पिरोया है लेखिका ने जिसके लिए वह
बधाई
की पात्र है।
'नेग'- प्रेम और सद्भावना भरा व्यवहार पत्थर दिल इंसान को भी बदलने पर मजबूर कर देता है।
'ठनी लड़ाई'चुलबुली सी मगर बेहद रोचक कथा है। आंँखों के सामने चलचित्र सी चलती, बिंबों का बेहद खूबसूरती से प्रयोग किया गया है।
रिश्तों की लघुकथाएं:
'अंतर्देशीय'आज के समय में रिश्तों में आती दूरियों का एहसास करवाती लघुकथा है।
'पुनर्गठित'इस लघुकथा में मांँ ने बेटी का साथ देकर सही किया ताकि जो उसके साथ घटा, वह बेटी के साथ ना घटे। आज की नारी कमज़ोर नहीं है। सार्थक दिशा की ओर अग्रसर करती लघुकथा के लिए साधुवाद है लेखिका को।
'समस्या'परिवार में आपसी प्रेम का उदाहरण देती मन को छू लेने वाली रचना है।
'सागर की आत्महत्या'एक बेहद गंभीर विषय उठाया है लेखिका ने अपनी इस लघुकथा के माध्यम से। अक्सर पूरे घर की जिम्मेदारियां निभाते पिता के मन की बात को कोई समझ नहीं पाता, उन्हें भी जरूरत है समझने की।
'आप अच्छे हो'प्रतियोगिता के युग में माता-पिता बच्चों को मशीन बना रहे हैं। उन्हें एक दूसरे से आगे बढ़ते देखना चाहते हैं। इसी बीच अगर वह ऐसा ना कर पाएं तो जीवन की एहलीला खत्म करने की ओर अग्रसर हो जाते हैं। इसलिए बेहतर है उन्हें सही समय पर संभाल लिया जाए। आज के युग के लिए संदेश देती एक सार्थक कथा।
विविध लघुकथाओं में:
'तुसी ग्रेट हो'एक बेहद हल्की फुल्की खूबसूरत रचना है।
'कॉपी पेस्ट'इस रचना को पढ़ने के बाद तो बस मन में एक ही पंक्ति बार-बार आ रही है "नानक दुखिया सब संसार।"
'एहसासों की दीपावली'रिश्तो का अहसास करवाती बेहद मार्मिक रचना है। समय बहुत तेजी से बीत रहा है और सब अपने आप में व्यस्त हैं, अकेलेपन से निपटने के लिए अपने मन को खुद ही समझाना पड़ता है।
'शपथ'इंटरनेट के इस दौर में हम रिश्तों को तरजीह देना भूल गए हैं और आभासी दुनिया में कहीं खो गये है।
अन्य और भी लघुकथाएं हैं जिन पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है किंतु आगे मैं पाठकों के लिए छोड़ती हूँ।
मुझे उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आपके विचार पाठकों के मन मस्तिष्क में उतरकर उनके जीवन को सही दिशा की ओर दृष्टिगोचर कर देंगे। लेखिका को इस खूबसूरत संग्रह के लिए हार्दिक
बधाई
एवं शुभकामनाएंँ प्रेषित करती हूँ। उनकी कलम यूंँ ही नित नये आयाम स्थापित करती रहे।
सीमा वर्मा
लुधियाना (पंजाब)
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बहुत बहुत आभार आदरणीया सीमा वर्मा जी