Quantcast
Channel: मधुर गुँजन
Viewing all articles
Browse latest Browse all 486

पाठकीय में रमेश सोनी जी की पुस्तक

$
0
0

 पाठकः ऋता शेखर ‘मधु'

पुस्तक- गुरतुर मया- छत्तीसगढ़ी हाइकु संग्रह
लेखक- रमेश कुमार सोनी

प्रकृति के साथ स्नेहिल संबंधों को कहता हाइकु संग्रह; गुरतुर मया- 


गुरतुर मया- छत्तीसगढ़ी हाइकु संग्रह
रचनाकार-रमेश कुमार सोनी
प्रकाशक - श्वेतांशु प्रकाशन, नई दिल्ली-११००१८
मूल्य- २५०/-

किसी राज्यविशेष की भाषा में संग्रह पढ़ना, समझना और लिखना थोड़ा कठिन है। अपनी तरफ से कोशिश कर रही हूँ कि वही हाइकु लूँ जो समझ पा रही हूँ। त्रुटि की पूरी संभावना है, सोनी सर सही अर्थ बताएँ और मार्गदर्शन करें।

यह पुस्तक मुझे श्वेतांशु प्रकाशन की ओर से मेरी पुस्तकों के साथ उपहार स्वरूप भेजी गई है। इसके लिए मैं प्रकाशन का आभार प्रकट करती हूँ।

मुखपृष्ठ राज्य की लोक परम्परा के अनुसार रखी गयी। छत्तीसगढ़ी गीतों में जिन वाद्ययंत्रों का प्रयोग होता है वह पीली रंगत लिए अपनी छटा बिखेर रहा। पुस्तक पूज्य माता-पिता को समर्पित की गई है।
सर्वप्रथम पुस्तक के नाम पर आती हूँ। गुरतुर मया का अर्थ है- मीठे संबंध| मिठास भरा नामकरण पुस्तक में अपने आप ही एक मिठास पैदा कर रहा| भूमिका में एक महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ चंद्रशेखर सिंह जी ने कहा है कि यह संग्रह छत्तीसगढ़ी भाषा मे हाइकु की प्रथम पुस्तक है|इस पुस्तक में छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक चिन्ह-लोककला, सभ्यता संस्कृति और जनजीवन से संबंधित सुन्दर हाइकु संकलित हैं| 

१६६८ में जापानी हाइकुकार बाशो के लोकप्रिय हाइकु का हिन्दी अनुवाद है- 
ताल पुराना/ कूद गया मेढक/ पानी का स्वर| 
छत्तीसगढ़ी अनुवाद…
जुन्ना तरिया / कूद गेहे बेंगवा/ पानी छपाक |

कुल ११२ पृष्ठों के संग्रह में पूरे हाइकु को विषयानुसार सात खंडों में रखा गया है|

प्रथम खंड ‘सोनहा बिहान’ से कुछ हाइकु है जो निम्नलिखित हैं|

सोन बगरे/ सुरुज फ्री बाँटथे/ उठ बिहाने।

प्राकृतिक शब्दों को लिए हुए यह हाइकु बहुत सुंदर है जो एक दृश्य उत्पन्न कर रहा है ।प्रातः काल सूर्य आ चुके हैं। वे अपने स्वर्ण रश्मिया बांट रहे हैं जिसके लिए उन्हें कोई मूल्य नहीं देना है। बस भोर में उठकर उसका लाभ उठाना है।

संझौती बेरा/ अगास दिया बरे/ जोगनी-तारा।

बेहद खूबसूरत हाइकु। शाम हो चुकी है आकाश में सितारे जगमगा उठे हैं ऐसा लग रहा है जैसे दीपक जल उठे हैं। उसी वक्त धरती पर जुगनूओं की चमक फैल गई है। प्रकृति पर आधारित मनभावन दृश्य उत्पन्न हो रहा है।

पुस के घर/ कथरी ओढ़े आथे/ घाम पहुना।

पूस का महीना आ चुका है धूप मेहमान बनकर आई है और वह भी कथरी अर्थात चादर ओढ़ कर आई है। पूस के महीने में जबकि कड़ाके की ठंड होती है और धूप की जरूरत होती है तो धूप भी थोड़ी नखरीली हो जाती है। चादर ओढ़ कर आई है धूप, बस रस्म के लिए आती है। सूर्य भगवान भी लगता है जैसे ठंड से काँप कर रजाई ओढ़ लिए हों।

कोन दूल्हा हे? बादर के मांदर/ बूँद-बराती।

वर्षा ऋतु का बेहद खूबसूरत वर्णन आसमान में बादल छाए हैं बादल अर्थात बूंदों की महफिल सजी है। लेकिन सारी बूंदे बाराती हैं तो दूल्हा कहां है। ऐसा लग रहा है जैसे बिन दूल्हे की बारात चल रही हो।

दुइज - चंदा/ हँसिया धरे हाथे/ कोन छेड़ही ।

एक संदेश देता हुआ हाइकु जो बहुत खूबसूरती से बता रहा कि स्वयं की रक्षा करने की क्षमता हो तो कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता| नम्र बने रहकर भी स्वरक्षा के लिये तत्पर रहना आवश्यक है| इसी तर्ज पर एक और हाइकु है|

फूल-गुलाब/ भौंरा छुए डेराथे/ काँटा- पहरा|

गरमी की छुट्टियों पर नानी घर का अधिकार होता है| वर्ष में एक बार बेटी जो स्वयं माता बन चुकी है, अपने बच्चों को लेकर अपनी माँ के घर आती है| इस अघोषित परंपरा को हाइकुकार ने बड़े ही सुन्दर शब्दों में व्यक्त किया है|

गरमी छुट्टी/ अलवइन माते/ ममा के गाँव|

आलसी और सुस्त को भी विषय बनाने का अद्भुत विचार लेखक की सूक्ष्म सोच को दर्शाता है| कोई काम न करना चाहे तो लाख आवाज दे लो, सौ प्रेरणाएँ दे दो, हजार लालच दे दो; उसे नहीं करना तो नहीं ही करना है| वह अपने आप में मस्त प्राणी होता है| देखिए…

भइंसा सुस्त/ कोन उठा सकहिं?/ पगुरात हे|

दूसरा विषय हैः धान का कटोरा

हाइकु देखें…

जरई फूटे/ सोहर गाथे काकी/ खेत बाढ़य|

भारत गाँवों का देश है और गाँव तथा खेत एक दूसरे के पर्याय हैं| जब भी नई फसल के लिए बीज रोपे जाते हैं तो उनमें अँकुरण का होना उत्सव का माहौल पैदा करता है; जैसे घर में नन्हें मेहमान का आना और उसके स्वागत में घर की बुज़ुर्ग महिलाओं द्वारा सोहर गाना|

एक अन्य हाइकु…

खेत पियासे/ नहर-पानी भरे/ नइ अघाय|

सिंचाई के लिए नहर की व्यवस्था है , फिर भी खेत प्यासे रह जाते| फसल के लिए उन्हें रिमझिम बारिश चाहिए| जहाँ पर जिसकी आवश्यकता होती वहाँ वही होना चाहिए| वैकल्पिक व्यवस्था से कुछ हद तक ही लाभ उठाया जा सकता है|

मोर मयारु विषय से एक हाइकु ले रही हूँ| इस विषय में शामिल हाइकु को देखते हुए मुझे इस शब्द का जो अर्थ समझ में आ रहा है वह है; साजन-सजनी| हाइकु भी बहुत अच्छे हैं, जैसे…

सोनहा धान/ मुड़ी नवाय खड़े/ नवा बिहाती|

धान के पौधों पर सुनहरी बालियाँ लग चुकी हैं| बालियों के वजन से सुकुमार पौधे झुके-झके नजर आ रहेः बिल्कुल नई नवेली दुल्हन की तरह| प्रकृति को केंद्र में रखकर रचे गए सभी हाइकु में सौंदर्य तत्व के साथ सार्थक कथ्य भी है|

रिश्ते नाते के मनमोहक हाइकु गढ़े गये हैं| नई दुल्हन जिसे बिहार में कनिया कहते हैं; छत्तीसगढ़ में कनिहा कही गयी| वह जब चाबी का गुच्छा संभालती है है तो वह दो कुलों को संभालती है| हाइकु देखिए…

कनिहा खोंचे/ दू घरहा चाबी ल/ नवा सासन |

जितना समझ पाई , वह बहुत अच्छे हाइकु हैं| जो नहीं समझ पाई उसे समझ पाने की जिज्ञासा बढ़ गई| मैं आदरणीय रमेश सोनी जी को सुझाव देना चाहती हूँ कि यदि संभव हो सके तो आगे की पुस्तकों में कुछ शब्दों के अर्थ भी दें ताकि हिन्दी भाषी भी पुस्तक का समुचित लाभ उठा सकें|
आगे भी आपकी पुस्तकें आती रहें, अशेष शुभकामनाओं के साथ,
ऋता शेखर ‘मधु’

Viewing all articles
Browse latest Browse all 486

Trending Articles