आया कहाँ से, जाना कहाँ है...
सुदूर क्षितिज की छाँव में
नभ का पंथी श्रांत क्लांत
अस्ताचल की गोद में
चुपचाप नींद भर सोता है
कलकल नदिया थम चुकी
नीरव संध्या की बेला में
हे ! मनुज, तू नौका पर
किस चिंतन में खोता है
आया कहाँ से, जाना कहाँ है
डूबेगा मझधार में या
किनारे भी मिल जाएँगे
सोच सोच क्यूँ रोता है
जीवन के इस सांध्य में
पंछी नीड़ में दुबक गए
कहीं कोई न दिखे सहारा
क्यूँ शून्य में नयन भिगोता है
बस उसका ही ध्यान कर
मन को न मंझान कर
जो लाया है जगत में
पतवार वही तो खेता है
हम मात्र कठपुतली हैं
हर धागे की पेंच पर
वही नचाता जाता है
हम नाचते जाते हैं|
...ऋता