
अवतरण दिवस है राम का
ध्वजा उठी हनुमान की
वाल्मीकि ने कथा कही
जग में भक्तों के मान की
कठिन थे दिन वनवास के
सघन खिंची थी लक्षमण रेखा
सरल सिया न समझ सकी
पूर्वनियोजित विधि का लेखा
याचक को लौटा न सकी
सोच बढ़ी थी स्वाभिमान की
हरी गई सिय लोप हुई
बिलख पड़े रघुनंदन भाई
जाने कौन दिशा में ढूँढे?
पवनपुत्र ने की अगुआई
अवनि अम्बर एक हुए
विस्तार बढ़ी उनके उड़ान की
विघ्न की सुरसा मुँह फाड़े थी
चतुर भक्त ने दे दी मात
उपवन उपवन घूम घूम कर
सिय माता से कर ली बात
धू धू कर लंका जली
राख उड़ी दसमुख के शान की
श्रीराम सिय और लखन संग
लौट अवधपुरी को आए
अंजनिपुत्र चरण में बैठ
रामभक्त हनुमान कहाए
युग बीता सदियाँ बीतीण
गूँज उठी है राम गान की
युग आए सतजुग के जैसा
दृग दृग में यह स्वप्न दिखे
गणपति बन कर अर्धदंत से
ग्रंथ कहो अब कौन लिखे
कहाँ भक्त हनुमान सरीखा
टाले जो विपदा विधान की
अवतरण दिवस है राम का
ध्वजा उठी हनुमान की
--ऋता शेखर 'मधु'