Quantcast
Channel: मधुर गुँजन
Viewing all articles
Browse latest Browse all 491

तटस्थ-लघुकथा

$
0
0
शीर्षक : तटस्थ
रमा को अपना तटस्थ व्यवहार बहुत पसंद था। बड़ी से बड़ी बहस में भी वह अपना कोई मत प्रकट न करती और चुप्पी साध लेती। इसलिए वह सबकी प्रिय बनी रहती।

आज फिर से एक नई बहस छिड़ी थी। कॉलेज में कमिटी के प्रेसिडेंट का चुनाव होना था। इस चुनाव में दोनों प्रतिद्वंदी , रूही और सुरभि उसकी सहेलियाँ ही थीं। इसी बात को लेकर कॉमन रूम में बातें हो रही थीं। जाहिर है कोई रूही की ओर से बोल रही थीं और कुछ सुरभि के पक्ष में थीं।

थोड़ी देर बाद सबको यह कहा गया कि जो रूही के पक्ष में हैं वे अपने हाथ उठाएँ। कुछ ने हाथ उठाये जिनकी गिनती कर ली गयी। उसके बाद सुरभि के लिए हाथ उठाने को कहा गया।

यह संयोग ही था कि दोनों के लिए बराबर हाथ उठाये गए। वोट देने वाली छात्राओं की कुल संख्या विषम थी तो यह स्पष्ट हो गया था कि कोई तो ऐसा है जिसने अपने हाथ नहीं उठाए थे।

अचानक आवाज आई,"रमा ने अपने हाथ नहीं उठाए ।"

सबकी निगाह रमा की ओर मुड़ गयी। उसने वास्तव में अपना मत नहीं दिया था। अपना मन्तव्य कभी स्पष्ट न करने वाली रमा दुविधा में पड़ गयी।

उसने कहा,"मैं इन सब चीजों से दूर रहना चाहती हूँ।"

"किन्तु तुम्हारे मत पर ही किसी एक को जीत हासिल होगी। आज यह प्रक्रिया पूरी न हुई तो फिर से सारा आयोजन करना होगा।"

उसने सोचा कि जिसके लिए भी वह हाथ उठाएगी तो दूसरी सहेली नाराज हो जाएगी। वह यह भूल गयी थी वहाँ सब सहेलियाँ ही थीं। मत देना एक अलग बात थी, वहाँ योग्यता का चुनाव होना था। उससे कोई खुश या नाराज नहीं होता है।

उसने हाथ जोड़ दिया,"मैं इस आयोजन से खुद को अलग करती हूँ।"

अब रूही, सुरभि और सारी सहेलियों की आँखों में नाराजगी उतर आई थी।
@ ऋता शेखर 'मधु'

Viewing all articles
Browse latest Browse all 491

Latest Images

Trending Articles



Latest Images